सोलह श्रृंगार सा तुझमे समा जाऊँ।
तेरा श्रृंगार बन जाऊँ ....!
तेरे माथे का टीका बन जाऊँ या तेरी माँग भर जाऊँ ।
तेरी आंखों का सुरमा बन जाऊँ या तेरा नज़रिया बन जाऊँ ।
कानों का झुमका बन जाऊँ या झुमके में अटकी जुल्फें बन जाऊँ ।
तेरा गजरा बनकर बालों में महक जाऊँ।
होठों की लाली हो जाऊँ या उनका रस बन जाऊँ ।
तेरे गले का स्वर बन जाऊँ या मंगलसूत्र बन जाऊँ । #Mypoem#Rajat#सोलहश्रृंगार#rajatagarwal#melting_philosophy#18thpoem