तेरे साथ होने की ख़ुशी, ये मदहोश शमा, फिर ये पल लौट आये, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ग़ैर होकर भी तेरी आँखों से, मुझसे बिछड़ने के लिये, आँसुओं की धार बहे, ऐसा लगता तो नहीं हैं। किसी मोड़ पर आ मिले, इक पल थोड़ा मैं ठहरू, तुम भी वहाँ ठहरो, ऐसा लगता तो नहीं हैं। कोई बात जो तुमने न कहीं, फिर वहीं दोहरा सको, हक से लगा लो तुम गले, ऐसा लगता तो नहीं हैं। किसी कोने में रोते छिपके , किसी बाहों में झुल्फ़ तले, गम के आँसू बहाते होगें, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ढ़लती रातों के साये में, पुरानी यादों को ताजा कर, इश्क़ की फुहारों में भीगते होगें, ऐसा लगता तो नहीं हैं। चलो!सफर इतना ही सही, लम्हें कुछ यादगार रहे, तुम भी उन्हें याद करो, ऐसा लगता तो नहीं हैं। लिकेश ठाकुर तेरे साथ होने की ख़ुशी, ये मदहोश शमा, फिर ये पल लौट आये, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ग़ैर होकर भी तेरी आँखों से, मुझसे बिछड़ने के लिये, आँसुओं की धार बहे,