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संभोग संभोग इस श्रष्टि के सृजन का मुख्य भाग है,

संभोग 

संभोग इस श्रष्टि के सृजन का मुख्य भाग है,
इसके बिना सृजन असंभव है,
परस्पर एक दूसरे में खोए बिना ये हो नहीं सकता,
ना जाने क्यों देखते हैं लोग इसे गलत नजर से,
जबकि ये संभोग तो अटूट प्रेम का ही एक पवित्र हिस्सा है,
अगर ये किसी के परस्पर रजामंदी का हिस्सा है,
तो फिर इसमें बुराई ही क्या है,
पर अगर ये किसी से जबरदस्ती है,
तो फिर फिर इससे बुरा पाप संसार में नहीं हैं,
हां इस संभोग का सबसे मुख्य बिंदु होता है,
एक दूसरे की परिपक्वता और समझदारी,
एक दूसरे के प्रति जुड़े एहसास और समर्पण,
जहां ये हैं फिर वहां संभोग गलत ही कहां है,
ना जाने दुनिया सोचती क्या है,
सबको चाहिए भी यही और सबके लिए गलत भी यही,
ना जाने दो दृष्टि कोड़ लेके चलते कैसे हैं,
जबकि इसके बिना श्रष्टि का सृजन मुमकिन नहीं....

©Shivendra Gupta 'शिव' #संभोग
संभोग 

संभोग इस श्रष्टि के सृजन का मुख्य भाग है,
इसके बिना सृजन असंभव है,
परस्पर एक दूसरे में खोए बिना ये हो नहीं सकता,
ना जाने क्यों देखते हैं लोग इसे गलत नजर से,
जबकि ये संभोग तो अटूट प्रेम का ही एक पवित्र हिस्सा है,
अगर ये किसी के परस्पर रजामंदी का हिस्सा है,
तो फिर इसमें बुराई ही क्या है,
पर अगर ये किसी से जबरदस्ती है,
तो फिर फिर इससे बुरा पाप संसार में नहीं हैं,
हां इस संभोग का सबसे मुख्य बिंदु होता है,
एक दूसरे की परिपक्वता और समझदारी,
एक दूसरे के प्रति जुड़े एहसास और समर्पण,
जहां ये हैं फिर वहां संभोग गलत ही कहां है,
ना जाने दुनिया सोचती क्या है,
सबको चाहिए भी यही और सबके लिए गलत भी यही,
ना जाने दो दृष्टि कोड़ लेके चलते कैसे हैं,
जबकि इसके बिना श्रष्टि का सृजन मुमकिन नहीं....

©Shivendra Gupta 'शिव' #संभोग