मुक़म्मल कुछ नहीं इस जहाँ में, सबकुछ तो बेमानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। चाहत, मोहब्बत,आशिक़ी, सब किस्से और कहानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। दर्द, तन्हाई, आँसू, मायूसी, सब इश्क़ की ही निशानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। लाख ठोकरें है राह-ए-इश्क़ में, फिर भी दुनिया दीवानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। काटे नहीं कटते दिन कभी और रातों से दुश्मनी पुरानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। हर दुआ फ़ीकी पड़ जाती है, जब फ़ितरत में बेईमानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। देख लिया हमने इस जहाँ में, अश्कों में रात बितानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। वो कहते हैं "साहिल" तो खुश है, एक बात उन्हें बतानी है। जिसके हक़ में जितना कुछ, उतना ही आँखों में पानी है। ♥️ Challenge-711 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।