बहुत तेजी से गुजर रहा है वक़्त सफर उदास होने को है। ना जाने मंजिल क्यो नही समझती कि राही हार जाने को है। ये कैसा शोर है खामोशी में कि सुनना भी बहुत कुछ है ओर कहने को अल्फाज नहीं। देर सी हो रही है पहुंचने में ठहरना है, चलना है दिल में अरमान बहुत है। कैसे सुलझेगी ये पहेली, यहां अंजान बहुत है। शायद ये वो सफर है जिसका कोई अंजाम नहीं। राही भी उलझन में हैं बेखबर सा क्योंकि मंजिल गुमनाम सी है। By Pradeep..