जिस्म की चाहत रखने वालों को देखता हूँ जिस्म बदलते हुए सच्चे प्यार की चाहत रखता हूँ और पाता हूँ खुद को ज़द्दोज़हद करते हुए ये सब खुदा की ही मर्ज़ी होगी मना लेता हूँ मन को यही सहते हुए इश्क़ होते हुए भी लोग दूसरा दरवाज़ा ढूंढते हैं क्या कभी खुलेंगी मेरी खिड़कियां मेरे जीते जी,मेरे रहते हुए जिनसे इश्क़ करते हैं, टूटने के बाद उनकी शक्ल नहीं देखना चाहते क्या इन्हें शर्म नहीं आती थी पहले देखते हुए समंदर पी जाने के बाद पानी खारा था डूब क्यों नहीं मरते ऐसा कहते हुए खुदा से एक ही दुआ मांगता हूं सच्चा प्यार कभी ना तड़पे आंखों से आंसू बहते हुए कटाक्ष