*मेरी खामोशी* छूटता रहा साथ सबसे मेरा, सबके अपने-अपने उसूल थे, अपनी सफाई मे कुछ ना कह सका, मुझ पर ही रिश्तो के बहुत से बोझ थे, मै इसलिये भी चूप था कि मेरी ही ख्वाहिश थी अकेले गुप-चुप न रहना यही मेरी कमजोरी थी मेरी क़िस्मत!! लोग आजमाते गए मुझे, मै जानिब मोहरा था!! वो मुझे खेल खिलाते गए उनकी सभी बाते थी मंजूर मगर! मेरी खुदगर्ज़ी का भी सवाल था हर बात पर हामी भरना, मेरे बस से बाहर था बस यही सब चलता गया, ऐ गुज़रे वक़्त!! तेरे साथ-साथ रिश्तो का दम भी घुटता गया मै इस लिए भी खामोश रहा, ये मेरा ही कसूर था अन्धा भरोसा करना, नुश्ख भी तो मेरा ही था मै इतने के बाद भी अपने मे ही खोया हूं शुक्र है!! वक़्त का, मै बस कुछ पल ही रोया हूँ यूँ करके ही जानिब मै हर बार खामोश रहा मेरी ही खामोशी का मुझपर ही बोझ रहा।। #मेरी_खामोशी