मेरा मुर्शिद ऐसा कि महफिल में सारी ख्वाहिशे हर बार मरोड़ देता, मोहतरमाओ की तारीफ़ खाकर मुझे चंद तालियों के सहारे छोड़ देता। माना कि मुर्शीद के बाकी सारे शागिर्द महफिल में चार चांद लगा देते हैं, तब्बजो दी होती इस-ना-चीज़ को भी तो उफनती दरिया का रुख मोड़ देता। अरे मै जाबांज इतना तो नही कि पत्थर मार कर चांद तोड़ देता, मुर्शिद को सुना रात तो लगा हाथ में पत्थर होता तो सर फोड़ देता। ©ajaynswami #InspireThroughWriting