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वो जो लफ़्ज़ों में रूह पिरोया करता था जाने कई नींदों

वो जो लफ़्ज़ों में
रूह पिरोया करता था
जाने कई नींदों को
तसल्ली दी थी जिसने 
ज़मीं को छोड़कर
गुज़र गया है वो
शायद आसमान को
कुछ सुकून की तलाश थी
कई लफ्ज़ हैं 
जो अब आवारा ही भटकेंगे
लफ़्ज़ों में रूह पिरोने वाला
हर कोई खैय्याम नही होता #खैय्याम
वो जो लफ़्ज़ों में
रूह पिरोया करता था
जाने कई नींदों को
तसल्ली दी थी जिसने 
ज़मीं को छोड़कर
गुज़र गया है वो
शायद आसमान को
कुछ सुकून की तलाश थी
कई लफ्ज़ हैं 
जो अब आवारा ही भटकेंगे
लफ़्ज़ों में रूह पिरोने वाला
हर कोई खैय्याम नही होता #खैय्याम