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संभलना अलग बात है और गिर कर उठ जाना अलग बात है। जो

संभलना अलग बात है और गिर कर उठ जाना अलग बात है। जो गिरने से संभल गए, 
उन्हें गिरने के अनुभव से और गिरकर उठ जाने के, सामर्थ्य से अलग होना पड़ा। 
और जो जीवन में हर बार, गिर कर उठ जाने में सक्षम हुए। वही अपने जीवन की 
बागडोर को, अपने हाथों से संभाला है।

©Rohan Roy
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Rohan Roy

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