लाज का घूँघट नज़रो का छोड़ा नहीं संस्कारों से कभी मुँह मोड़ा नहीं। दायरे में रह करती हूँ हर काम मगर लोगों ने फिर भी ताने मारना छोड़ा नहीं ज़वाब खरा दे सकती हूँ मैं भी मगर माँ ने सिखाया वो सलीका छोड़ा नहीं आँखों में है लाज का घूँघट वही रखा मैंने, दिखावे का चेहरे पर ओढा नहीं ♥️ Challenge-601 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।