मुहब्बत पे मुहब्बत फिर लुटा के आ रहा हूँ मैं मुहब्बत पे ग़ज़ल ऐसी सुना के आ रहा हूँ मैं मुसलसल ख़ुद को ख़ुद ही से बचा के आ रहा हूँ मैं यूँ कश्ती रेगज़ारों में चला के आ रहा हूँ मैं बिगाड़ेंगी ये लहरें अब मिरा कैसे भी कुछ यारों समंदर एक फिर भीतर दबा के आ रहा हूँ मैं ओ तूफानों सुनो तुम भी लो टकराओ वहीं मुझसे लो ख़ुद इक नाव फिर अपनी बना के आ रहा हूँ मैं नहीं बढ़कर है हमदम हौसले से कुछ भी दुनिया में ये अब सारी ही दुनिया को बता के आ रहा हूँ मैं जो बिटिया सो रही होगी कहूंगा मौत से भी मैं चलो तुम, गोद में इसको सुला के आ रहा हूँ मैं किसी के दर्द का मरहम बनेगा अब फकीरा भी फ़क़त अपने ग़मों को ख़ुद भुला के आ रहा हूँ मैं एक ग़ज़ल हुस्न ए मतला के साथ पेश है #रेगज़ार - रेगिस्तान,मरुस्थल,desert #fakeera_series #ghazalgo_fakeera #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan