इब्तिदा-ए- मोहब्बत में घबराना लाज़मी है, तुम्हारा मेरे नाम पे यूं शर्माना लाज़मी है झगड़ कर रात को भटकते रहना आदतन, थक जाओ तो घर वापस आना लाज़मी है बरसो लगे रहना किसी शख्स को भुलाने में फिर अचानक से याद का आना लाज़मी है पत्थरों के आंसू टपके ऐसी बंदिश तो नहीं, इंसान हो तो अपना ज़ख्म दुखाना लाज़मी है इब्तिदा-ए- मोहब्बत में घबराना लाज़मी है, तुम्हारा मेरे नाम पे यूं शर्माना लाज़मी है झगड़ कर रात को भटकते रहना आदतन, थक जाओ तो घर वापस आना लाज़मी है बरसो लगे रहना किसी शख्स को भुलाने में फिर अचानक से याद का आना लाज़मी है