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सर का खौफ (poetry - Govind Singh) सर आप हों कॉलेज

सर का खौफ (poetry - Govind Singh)

सर आप हों कॉलेज के डॉन, हर वर्ष हम पर बन जाते हो शेर
सर आपके बालक हैं हम, विना गलती के देते हों हमे पनिशमेंट

सर आपसे क्या कहूं मैं खास, आपसे नहीं है मेरी कोई आस
जब हम बोलते हैं आपसे खास, सर आपको लगती है हमारी हर बात बकवास

शिष्य पर नहीं है आपको विश्वास, सर आप हो मेरी पिछले जन्म की खडूस सास
सर आप सर नहीं सर हैं बड़े सनकी, ना सुनते हैं सर हमारे मन की

समझ नहीं आता सर ऐसे क्यों होते हैं, 
कभी करेले जैसे कड़वे तो कभी जलेबी जैसे टेढ़े होते हैं
ऐसे सर हो उनके शिष्य टेंशन के मारे रोते हैं, 
समझ नहीं आती बातें उनकी फिर भी हम समझते हैं

सर आपसे तो अच्छे होते हैं, बचपन के सर
जो कभी तो शांति और फुर्सत से बुलाते हैं

सर आप पढ़ाते रहते हो, फिर देते हो होमवर्क
होमवर्क भीं लगता हैं घर, कॉलेज की जेल घड़ी

हमें दूसरे दिन का काम देकर खुद फुर्सत से चले जाते हो
रात भर हमारे सपनों में आकर तांडव नृत्य कराते हो

सुबह प्रार्थना सभा में डांटते हो सुबह नाश्ते में क्या मिर्ची खाते हो
आप हमें सर नहीं लगते सर रूप में विलन नजर आते हो

अगले जन्म में मैं बनूं सर आप बन कर आओ मेरे शिष्य
बात-बात पर डाटूगा, हर समय पढ़ाऊंगा

सर आपसे क्या कहूं मैं खास, आपसे नहीं है मेरी कोई आस
kavialfaaz@gmail.com

©KAVI ANDAAZ
  सर और विद्यार्थी
kavialfaaz5293

KAVI ANDAAZ

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सर और विद्यार्थी #Thoughts

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