प्रभात् ने भोज दिया.., सुनहरी-पीली किरणों की दाल पकाने को.. यह सूरज का पतीला.. आसमान के चूल्हे पर कौन चढ़ा गया.. बादलों की अंगीठी भी सुलग रही है.. हंडिया मे रखा सितारों का चावल भी बदकने लगा है.. धरती की सुवर्ण थाल परोसने के लिए तैयार पड़ी है.. जाने कौन परदेशी घर लौट के आने वाला है.. नदी मे ये रौशनी,,किसने छिटका दी.. किसने इसे प्रेम रंग की मधुशाला बना दिया.. एक घूँट पीकर,,चाँद भी अब तो.. अलसाकर चाँदनी संग इसमें समा गया.. धरती की ढ्योढ़ी,आँगन-आँगन,क्यारी-क्यारी.. सजकर सँवरकर तैयार हो गयी.. हवा ने कानाफूसी की है.. पंछियों की बारात आने वाली है.. आगे क्या है लिखा.. भाग्य के कर्मफलों से आज.. कौन पूछेगा यहाँ.. जीवन की किताब में.. तेरे-मेरे प्रेम ने कुछ शब्द अपनी भावनाओं के अंकित कियें हैं.. कौन इसे हमारे बाद,,किसको सुनायेगा यहाँ.. प्रीत ने एक धुन बनायी है.. सुना है जुगनुओं से आज.. चाँदनी रात में इसे कोई गुनगुनायेगा,,किसी को करके याद.. सपनों की आहें कौन जाने.. चलूँ आज मैं भी.. अंतिम श्वाँस निमंत्रण लेके आई है...।। -AK__Alfaaz.. "भोज" प्रभात् ने भोज दिया.., सुनहरी-पीली किरणों की दाल पकाने को.. यह सूरज का पतीला.. आसमान के चूल्हे पर कौन चढ़ा गया.. बादलों की अंगीठी भी सुलग रही है.. हंडिया मे रखा सितारों का चावल भी बदकने लगा है..