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बे खयाली में अब भी दो कप चाय बना लेती हूँ.. घोलक

बे खयाली में अब भी
दो कप चाय बना लेती हूँ.. 

घोलकर इंतज़ार एक चुटकी
तुम्हारी यादों संग घुटक जाती हूँ.. 

खिड़की पर टांग दिया है बोझिल मन
कभी गुजरो जो भूले से उस रास्ते,
सहला जाना... 

मेरा क्या... 
 
न छूटेगी ये आदत चाय की.. 
और न ही तुम्हारे इंतज़ार की... 

मुझे नहीं मालूम कि
तुम बिन जिया जाए कैसे... 

#अमृता

©Amrita Singh #8LinePoetry
बे खयाली में अब भी
दो कप चाय बना लेती हूँ.. 

घोलकर इंतज़ार एक चुटकी
तुम्हारी यादों संग घुटक जाती हूँ.. 

खिड़की पर टांग दिया है बोझिल मन
कभी गुजरो जो भूले से उस रास्ते,
सहला जाना... 

मेरा क्या... 
 
न छूटेगी ये आदत चाय की.. 
और न ही तुम्हारे इंतज़ार की... 

मुझे नहीं मालूम कि
तुम बिन जिया जाए कैसे... 

#अमृता

©Amrita Singh #8LinePoetry
amritasingh4380

Amrita Singh

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