ये धर्म के झगड़े अब तो छोड़ दो चलो इंसानियत के सारे रिश्ते जोड़ दे प्यार और अपनेपन का मीठा रस सबमे घोल दे ये सफरनामा जिंदगी का ऐसे ही मोड़ दे नफरत के सारे किस्से किसी गड्ढे में छोड़ दे चलो फिर से प्यार को प्यार से जीत ले मन मे हैं मूरत उस एक शक्ति की जो बसी हैं अपने दिल के एक द्वार में मत ढूंढ़ो उसे भेदभाव के इस अजूबे में ये करेगा तुम्हे बस भ्रमित तुम्हारे अपनो से चलो छोड़ो इस बेफिजूल बातों को अब तो चल लो सब मिलके करने फरियाद हिलमिल रहने को ये नाते जोडों अब तो सच्चे यार के साथ निभाने के