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शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को

शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेडं पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकगा मुट्ठी भर -भर चावल
शायद कोई बच्चा-उबले हुए   !
देखोगे,रूपसा के गंदले-पानी में लौटकर आऊँए फिर
शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेडं पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकगा मुट्ठी भर -भर चावल
शायद कोई बच्चा-उबले हुए   !
देखोगे,रूपसा के गंदले-पानी में लौटकर आऊँए फिर

लौटकर आऊँए फिर