खुशियों की तलाश में जाने कहां कहां भटके फ़िर भी मन उदासियो के घेरे में क्यों विचरे! मेरी दहलीज तक आकर खुशियों का झोंका फ़िर क्यों मुझसे ही मुंह मोड़े, बताओ फिर कहां ढूंढें! तलाश करते आए हम दूसरों में अक्सर ख़ुशी अपनी मन ही ना प्रसन्न हो तो फिर कोई भला क्या करे! ग़म का तुफां आया यूं बेबस कर गया एक पल में बची खुची खुशियां भी उड़ गए उसी तुफां में! ग़म भी सहे रोए भी बहुत मगर फिर भी ”मुकेश” तुम थे कि खुशियों की तलाश में फ़िर निकल पड़े! ♥️ Challenge-544 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।