ये तो होना ही था जनाब पर आज होने पर इस बात पे ताजुब कयेसा ,, तेरा मेरा। नाता तो हम ने जमी में बना लिया। पर भूल हो गई खुदा का फैसला क्या था ।। तो इस। बात पे ताजुब क्येसा ज़रूरी तो नहीं है ना की कर्म मेरे आच्छे हो तो नसीब भी आछा होगा मेरा। तो इस बात पर ताजुब कैसा ।। बिखर गई जब ज़िन्दगी मेरी तो मा बाप को ,, दोस देने पर तुम्हारे ताजुब कैसा ।। समझ लो बेवफा निकली मै ,, तो मुझे इस बात पे भी ताजुब कैसा ।। बिखर गई रूह और मर गई आबरू मेरी तो बस मेरी लाश को आग देने पर तुम्हें ये ताजुब कैसा।। बिछड़ रहे रास्ते तो अब ताजुब कैसा ©Shivani gupta #SAD no ward are fiillings