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भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान

भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-

इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥

अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।

विष्णुपुराण भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-

इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥

अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।

विष्णुपुराण
भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-

इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥

अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।

विष्णुपुराण भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-

इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥

अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।

विष्णुपुराण

भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है- इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते। न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥ अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है। विष्णुपुराण