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तुम्हारी आँखें बहुत कुछ कहती थी, चमक ऐसी मानो कोई

तुम्हारी आँखें बहुत कुछ कहती थी,
चमक ऐसी मानो कोई नूर बिखरा हो।

इन आँखों में किरकरी रूंआसा दे रही है।
 त्रिवेणी 3 पंक्तियों पर आधारित एक विशिष्ट काव्य विधा हैI त्रिवेणी का आविष्कार गुलज़ार ने कियाI त्रिवेणी की पहली दोनों पंक्तियाँ अपना पूर्ण अर्थ रखती हैं, एक मुकम्मल शे’र की तरह और तीसरी पंक्ति जुड़ने से अर्थ परिवर्तन हो जाता है या अर्थ में कोई नया अर्थ जुड़ जाता हैI यह तीसरी पंक्ति एक कमेंट की तरह से काम करती हैI 

इसके बारे में गुलज़ार लिखते हैं- 
त्रिवेणी न तो मुसल्लस है,न हाइकू,न तीन मिसरों में कही एक नज्‍़म। इन तीनों ‘फ़ार्म्ज़’में एक ख्‍़याल और एक इमेज का तसलसुल (सिलसिला, संबंध) मिलता है। लेकिन त्रिवेणी का फ़र्क़ इसके मिज़ाज का फ़र्क़ है। तीसरा मिसरा पहले दो मिसरों के मफ़हूम (अर्थ) को कभी निखार देता है,कभी इज़ाफ़ा करता है या उन पर ‘कमेंट’ करता है। त्रिवेणी नाम इस लिये दिया गया था कि संगम पर तीन नदियां मिलती हैं। गंगा ,जमना और सरस्वती। गंगा और जमना के धारे सतह पर नज़र आते हैं लेकिन सरस्वती जो तक्षिला (तक्षशिला) के रास्ते बह कर आती थी, वह ज़मींदोज़ (विलुप्त) हो चुकी है। त्रिवेणी के तीसरे मिसरे का काम सरस्वती दिखाना है जो पहले दो मिसरों में छुपी हुई है।

“सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
तुम्हारी आँखें बहुत कुछ कहती थी,
चमक ऐसी मानो कोई नूर बिखरा हो।

इन आँखों में किरकरी रूंआसा दे रही है।
 त्रिवेणी 3 पंक्तियों पर आधारित एक विशिष्ट काव्य विधा हैI त्रिवेणी का आविष्कार गुलज़ार ने कियाI त्रिवेणी की पहली दोनों पंक्तियाँ अपना पूर्ण अर्थ रखती हैं, एक मुकम्मल शे’र की तरह और तीसरी पंक्ति जुड़ने से अर्थ परिवर्तन हो जाता है या अर्थ में कोई नया अर्थ जुड़ जाता हैI यह तीसरी पंक्ति एक कमेंट की तरह से काम करती हैI 

इसके बारे में गुलज़ार लिखते हैं- 
त्रिवेणी न तो मुसल्लस है,न हाइकू,न तीन मिसरों में कही एक नज्‍़म। इन तीनों ‘फ़ार्म्ज़’में एक ख्‍़याल और एक इमेज का तसलसुल (सिलसिला, संबंध) मिलता है। लेकिन त्रिवेणी का फ़र्क़ इसके मिज़ाज का फ़र्क़ है। तीसरा मिसरा पहले दो मिसरों के मफ़हूम (अर्थ) को कभी निखार देता है,कभी इज़ाफ़ा करता है या उन पर ‘कमेंट’ करता है। त्रिवेणी नाम इस लिये दिया गया था कि संगम पर तीन नदियां मिलती हैं। गंगा ,जमना और सरस्वती। गंगा और जमना के धारे सतह पर नज़र आते हैं लेकिन सरस्वती जो तक्षिला (तक्षशिला) के रास्ते बह कर आती थी, वह ज़मींदोज़ (विलुप्त) हो चुकी है। त्रिवेणी के तीसरे मिसरे का काम सरस्वती दिखाना है जो पहले दो मिसरों में छुपी हुई है।

“सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
avinasha8464

Avinasha

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