मेरी आत्मा प्रस्तुत है, किंतु मेरे संमुख आने से पूर्व, तुम जाओ, और..जाकर, पहले ही, सिद्धार्थ से बुद्ध बन जाओ, सत्य की खोज करो, बोध वृक्ष की छाया में, बोधज्ञान पाकर, बोधिसत्व कहलाओ, अपने शिष्यों को जीवन दीक्षा दो, निष्ठुर अंगुलिमाल का, हृदय परिवर्तन कर, उसे सत्य सन्मार्ग दो, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #आत्ममिलन मेरी आत्मा प्रस्तुत है, किंतु मेरे संमुख आने से पूर्व, तुम जाओ, और..जाकर,