जलता रहा चिराग रात में,मैं भी तो जला हूं साथ ही साथ में! देखता हूं खुद को आईना मे,पर उलझनें है कि सुलझती नहीं है!! मुकाबला भी तो हो गया मेरा है मेरे नसीब से वो इतने करीब से! कोशिशें ही लगता है मुकम्मल नहीं है कि उलझनें है कि सुलझती नहीं है!! मुफलिसी का दौर भी ऐसा है कि फटी हुई जेब होने लगी है! बताता भी तो अगर वो फलसफा कोई कि उलझनें है कि सुलझती नहीं है!! आज रोशनी से रातो को उम्मीद हो गई है पर मैं नाउम्मीद सा हूं! अँधेरा भी तो कुछ इस कदर है कि उलझनें है कि सुलझती नहीं है!! मेरे सब्र का मिनार तो खरा है पर नींव खोखले पन की शिकार हो गई है! अजीब से हालात से दो-चार हो रहा हूं कि उलझने है कि सुलझती नहीं है!! मेरे बंगले की दरो-दिवार चुप भी हो गई है अंजान भी है मेरे खयाल से! वो भी तो कुछ अंजान-अंजान से है कि उलझनें है कि सुलझती नहीं है!! थोरी तो मेरे नाउम्मिदी का असर हुआ है कि मेरा हिंसाब उलझ सा गया है! और रात भी तो मानता नहीं है जज्बातों को कि उलझनें है कि सुलझती नहीॆं है!! जलता रहा चिराग रात में रोहित तिवारी