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पुरस्कार के लालच में लिखता रहा, भेजता रहा रचनाओं

पुरस्कार के लालच में लिखता रहा,
 भेजता रहा रचनाओं को,अखबार में।
 यह प्रयास अनवरत जारी रखा मैंने,
 शायद केवल पुरस्कार के इंतजार में।
 धैर्य अपना रखना पाया,
रचनाएँ भेजकर हो चुका था निराश मै।
 बेईमानी का बोलबाला मानकर,
 छोड़ चुका था पुरस्कार की तलाश मै।
 अपनी डायरी में लिखे, भेजे पत्रिकाओं को,
 जब निराशा के उदगार  मैंने।
 तब लोगों से सुना ये कि इन पर ही
 पाया है प्रथम पुरस्कार मैंने।

©Kamlesh Kandpal
  #Puruskaar