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कभी कागज़ की कश्ती को सागर को मोड़ते देखा है.. क्या

कभी कागज़ की कश्ती को
सागर को मोड़ते देखा है..
क्या कभी सियारों को
शेर को रोकते देखा है...
देखा बहुत है पहाड सी ज़िन्दगी में
लंबे ऊंचे पेड़ों को झुकते हुए...
मुश्किल हो या, आसान गुज़र जाता है
क्या कभी देखा है वक़्त को रुकते हुए....
पहियों पर नहीं परों पर चलती है आशाएं
कभी देखा है कोशिशों को रूकते हुए...
कोशिशें पूरी हों तो आसां होती हैं मंज़िलें
देखा है हमने खुदा को भी झुकते हुए.... thodi si koshish, thodi se asha
astha ho khud me to dur nirasha
कभी कागज़ की कश्ती को
सागर को मोड़ते देखा है..
क्या कभी सियारों को
शेर को रोकते देखा है...
देखा बहुत है पहाड सी ज़िन्दगी में
लंबे ऊंचे पेड़ों को झुकते हुए...
मुश्किल हो या, आसान गुज़र जाता है
क्या कभी देखा है वक़्त को रुकते हुए....
पहियों पर नहीं परों पर चलती है आशाएं
कभी देखा है कोशिशों को रूकते हुए...
कोशिशें पूरी हों तो आसां होती हैं मंज़िलें
देखा है हमने खुदा को भी झुकते हुए.... thodi si koshish, thodi se asha
astha ho khud me to dur nirasha
tarunmadhukar6794

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