दूसरों की खुशियों में खुश नहीं कैसा ये रोग है। रोग का भी क्या खूब हो रहा उपयोग है! निंदा रसपान करेे कोई , कोई लगा रहा भोग है ! अजीब लोग हैं... झूट , कानों से कानों तक पहुंच रहा गजब का उद्योग है! जिस कान तक पहुंच गया वो सालों - साल निरोग है! मगर पहुंचा , हर कान तक , अलग अलग गजब का संजोग है! अजीब लोग है... मदद में साथ नहीं खड़ा कोई मगर निंदा में खूब हो रहा सहयोग है! बंटता जा रहा सभी में क्या ये मोहनभोग है!! इलाज इसका कुछ दिखता नहीं क्या ये प्रेम रोग है!!! अजीब लोग है...। रोग