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15 अगस्त 1947 का दिन... जिस दिन भारत आजाद हुआ, तब

15 अगस्त 1947 का दिन... जिस दिन भारत आजाद हुआ, तब से लेकर हम आज तक इस दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनातें हैं, आज के दिन हम ध्वजारोहण करतें हैं और पूरे हर्ष उल्लास के साथ इस दिन को एक पर्व के रूप में मनातें हैं,  जाति वर्ण के भेद को भूलकर इस पर्व को बेहद शालीनता से और ख़ुशी के साथ मनातें हैं.......पर ये स्वतंत्रता दिवस केवल हमारी स्वतंत्रता ही नहीं हैं....ये हमारे वीरों के शहादत की निशानी हैं, उनकी कुर्बानी हैं, उनका बलिदान हैं, उनके समर्पण की निशानी हैं....ये हमारी वो स्वतंत्रता हैं जों ख़ुद को गुलामी में कैद करा लिया.....पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने का हठ नहीं छोड़ा....अपनी मां की कोख सुनी कर गए.....पर अपनी भारत मां की स्वतंत्रता का हठ नहीं छोड़ा.....पत्नी की मांग की सिंदूर मिट गई...बहन की राखी अधूरी रह गई....पर वो अडे रहें अपनी मां की स्वतंत्रता के लिए........ अतेव हमारा भी फ़र्ज़ बनता हैं अपनें देश के प्रति, अपनें शहीद वीरों के प्रति, खुद अपनें प्रति....जिससे ये देश दिन प्रतिदिन उन्नति करता रहे....जी ऊंचाई पर वीर भाई देखना चाहते थे हम वहां तक लें जाएं...... हम एक लक्ष्य बनाएं इस दिन और पूरे साल पूरे मनोयोग से उस लक्ष्य को पूरा करें....फिर नए वर्ष नया लक्ष्य बनाएं....और ये कार्य निरन्तर करतें रहे...अपनें लिए, अपनें ,परिवार के लिए, अपनें देश के लिए...
                   धन्यवाद आवर वे ऑफ द मोटिव में आपका स्वागत है,
 स्वतन्त्रता दिवस पर निबंध गरिमापूर्ण   शब्दों में व्यक्त करना है

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15 अगस्त 1947 का दिन... जिस दिन भारत आजाद हुआ, तब से लेकर हम आज तक इस दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनातें हैं, आज के दिन हम ध्वजारोहण करतें हैं और पूरे हर्ष उल्लास के साथ इस दिन को एक पर्व के रूप में मनातें हैं,  जाति वर्ण के भेद को भूलकर इस पर्व को बेहद शालीनता से और ख़ुशी के साथ मनातें हैं.......पर ये स्वतंत्रता दिवस केवल हमारी स्वतंत्रता ही नहीं हैं....ये हमारे वीरों के शहादत की निशानी हैं, उनकी कुर्बानी हैं, उनका बलिदान हैं, उनके समर्पण की निशानी हैं....ये हमारी वो स्वतंत्रता हैं जों ख़ुद को गुलामी में कैद करा लिया.....पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने का हठ नहीं छोड़ा....अपनी मां की कोख सुनी कर गए.....पर अपनी भारत मां की स्वतंत्रता का हठ नहीं छोड़ा.....पत्नी की मांग की सिंदूर मिट गई...बहन की राखी अधूरी रह गई....पर वो अडे रहें अपनी मां की स्वतंत्रता के लिए........ अतेव हमारा भी फ़र्ज़ बनता हैं अपनें देश के प्रति, अपनें शहीद वीरों के प्रति, खुद अपनें प्रति....जिससे ये देश दिन प्रतिदिन उन्नति करता रहे....जी ऊंचाई पर वीर भाई देखना चाहते थे हम वहां तक लें जाएं...... हम एक लक्ष्य बनाएं इस दिन और पूरे साल पूरे मनोयोग से उस लक्ष्य को पूरा करें....फिर नए वर्ष नया लक्ष्य बनाएं....और ये कार्य निरन्तर करतें रहे...अपनें लिए, अपनें ,परिवार के लिए, अपनें देश के लिए...
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