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चिरागों को बुझा दिया करता हूँ मैं रोज रातों को, ऐ

चिरागों को बुझा दिया करता हूँ मैं रोज रातों को,
ऐ बेख़बर!
कहीं कोई कुरेद ना ले मेरे मन के अँधेरे में दफ्न हुए राजों को।। #76
चिरागों को बुझा दिया करता हूँ मैं रोज रातों को,
ऐ बेख़बर!
कहीं कोई कुरेद ना ले मेरे मन के अँधेरे में दफ्न हुए राजों को।। #76