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मां अब फ़िक्र कौन करेगा रोटी की,कमबख्त छाले समझते

मां अब फ़िक्र कौन करेगा रोटी की,कमबख्त छाले समझते नहीं पांव के,
दर्द भी है,दुख भी है,पर सुकून भी है, मीलों दूर तक पैदल चला तब नसीब हुए आंचल तेरे छांव के,
न जाऊंगा छोड़कर तेरी कसम,
बहुत अच्छे हैं,लोग अपने गांव के,
खाकर दलिया,निकलूंगा  घर से,
मूंछों पर ताव देकर कह दूंगा ये बासमती चावल हैं मेरे गांव के,
मां बहुत अच्छे हैं लोग मेरे गांव के,
तू धैर्य रखना मां,फिर कमा लूंगा रोटी मेहनत से,
ठीक तो हो जाने दो छाले मेरे पांव के, छाले मेरे पांव के,
मां अब फ़िक्र कौन करेगा रोटी की,कमबख्त छाले समझते नहीं पांव के,
दर्द भी है,दुख भी है,पर सुकून भी है, मीलों दूर तक पैदल चला तब नसीब हुए आंचल तेरे छांव के,
न जाऊंगा छोड़कर तेरी कसम,
बहुत अच्छे हैं,लोग अपने गांव के,
खाकर दलिया,निकलूंगा  घर से,
मूंछों पर ताव देकर कह दूंगा ये बासमती चावल हैं मेरे गांव के,
मां बहुत अच्छे हैं लोग मेरे गांव के,
तू धैर्य रखना मां,फिर कमा लूंगा रोटी मेहनत से,
ठीक तो हो जाने दो छाले मेरे पांव के, छाले मेरे पांव के,
rajeshrajak4763

Rajesh rajak

New Creator

छाले मेरे पांव के,