जज़्बात
कभी कभी ऐसा लगता है जैसे बात कहने के लिए कोई बहाना चाहिए होता है। ये ज़रूरी नहीं कि कुछ लिखने के लिए लिखने का तजुर्बा हो। दिल में कोई बात आ जाती है और अगर उसको क़लम के ज़रिये कागज़ पर उतार दिया जाए तो ख़ुद में वो शायरी सी महसूस होती है।
बीस साल पहले बहुत कम उम्र में ये अल्फ़ाज़ लिखे गए थे जो आज एक पुरानी कॉपी में लिखे दिखाई पड़ गये। पढ़ कर लगा कि उम्र बढ़ने के साथ साथ लिखने की क्वालिटी कम हो गयी है।
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