जैसे कान्हा की बाँसुरी में सदैव राधा की पुकार थी, उसी तरह मेरी कविता को उसकी नज़रों का इंतिज़ार है। (अनुशीर्षक में पढ़ें) काफ़ी वक़्त हो गया न? मैंने उस 'जाने पहचाने' अजनबी के बारे में कुछ लिखा ही नहीं! वो क्या है ना, कि हमारी बातें अब बस ख़यालों में होती है। उसे अब फ़ुरसत ही कहाँ कि पूछ लूँ कि उसकी 'जान', oops! नहीं! पागल दोस्त कैसी है? अरे! वो जान कहने वाली गलती हो जाती है। क्योंकि 'जान' सुनने को मेरे कान तरस गए हैं। मेरे पास उसकी कोई तस्वीर भी नहीं है। उसने कभी अपनी तस्वीर मुझे भेजी ही नहीं। हमारा नाता बस रूहानी रहा। उसे पसंद थी मेरी सादगी और मुझे लुभाता उसका भोलापन। बस इसी में मन संतुष्ट रहता था। एक्चुअली, मेरे पास उसकी ३-४ तस्वीरें हैं। उसके फेसबुक प्रोफाइल से चोरी की थी। shushhhh! उसे बताना मत! वरना वो खड़ूस और ज़्यादा सख़्त हो जाएगा। वैसे भी इतना मसरूफ़ है। ये बात पता चली तो फौरन मैसेज करेगा कि ये क्या? तुम्हारी बचकानी हरकतें अब भी गयीं नहीं? चलो डिलीट करो मेरी फोटोज़। और मैं उसकी कोई बात टाल भी नहीं सकती। मायूस होकर मैं एक फीका सा 'ओके' लिख दूँगी, फिर वो कहेगा, अच्छा ठीक है, डिलीट मत करो। मैं तुम्हारे हृदय की स्थिति समझता हूँ। पर तुम भी तो समझो कि मैं तुम्हें इतना बेचैन नहीं देख सकता। जब भी तुम मेरी तस्वीर देखोगी, तुम्हें वो तमाम बातें याद आएँगी, जिनका ज़िक्र अब हम नहीं कर सकते।