पल्लव की डायरी नजरो को घुमाओ स्वर्गो की जन्नत फैली है अंदाज जीने का बदलो खुशियाँ हर जगह बिखरी पड़ी है गले शिकवे को गले क्यों लगाते हो इंतजाम बर्षो की दौलत जोड़ने में अपने को तन्हा क्यों बनाते हो लालचों से गठजोड़ कर उम्र दाँव पर लगाते हो छूट जाती है मस्ती हाजिर जबाबी उनकी दबाबों में डूब जाती है कोरे कागज की तरह जिंदगी फीकी रह जाती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" अंदाज जीने का बदलो #colours