उलझ के रह गया हूँ मैं इन मोह के धागों में। क्यूँ मिलाता है उनसे जो होते नहीं भागों में। मानता हूँ तुझे बहुत ज़्यादा ऐ मेरे खुदा, क्यूँ शामिल करता है हर बार मुझे अभागों में। क्यूँ मेरे वजूद से नफरत हर किसी को है, क्या यूँ ही रहना होगा मुझे सदा अभावों में। मैं तो शिकायत तक नहीं करता कभी किसी से, फिर क्यूँ मेरी शिकायतें भर जाती उनके बैगों में। तू तो जानता है ना खुदा मेरा प्यार कोई दिखावा नहीं, फिर बता ज़रा क्यूँ घिर जाता हूँ इन अपराधों में। यूँ बुत बना ही बैठा रहेगा क्या उम्रभर तू भी, कम से कम सर तो हिला मेरे सवाल के जवाबों में। ©Prashant Shakun "कातिब" क्यूँ किसी को दुआके बदले दुआ नहीं मिलती क्यूँ किसी को खुशी के बदले खुशी नहीं मिलती #अंतर्मन_के_द्वंद्व #प्रशान्त_के_सवाल #प्रशान्त_की_ग़ज़ल #खुद_से_सवाल_जवाब #pshakunquotes