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( अनुशीर्षक ) प्रिय सुशील कुमारी "सांझ",. तुम्हे

( अनुशीर्षक ) प्रिय सुशील कुमारी "सांझ",.

 तुम्हें पता है पहर में मुझे सबसे प्रिय है " संध्याकाल ",.. और इस समय मैं अपना हर वह कार्य विशेष रूप से कर पाती हूँ जिनमें में मैं विशेष रूचि रखती हूँ,. इसमें सबसे ज़्यादा प्रिय है मुझे सूर्यास्त यह ढलती रक्तिम सी शाम का जो लुभावना दृश्य जो मन में उकेरा देता है,. ना वह सदृश्य परन्तु कोरी कल्पना से बहुत परे हैं,.

 " साँझ ",.

:- दृश्य यह लुभावना
   कर रहा कामुक मेरे शरीर का रोम रोम
( अनुशीर्षक ) प्रिय सुशील कुमारी "सांझ",.

 तुम्हें पता है पहर में मुझे सबसे प्रिय है " संध्याकाल ",.. और इस समय मैं अपना हर वह कार्य विशेष रूप से कर पाती हूँ जिनमें में मैं विशेष रूचि रखती हूँ,. इसमें सबसे ज़्यादा प्रिय है मुझे सूर्यास्त यह ढलती रक्तिम सी शाम का जो लुभावना दृश्य जो मन में उकेरा देता है,. ना वह सदृश्य परन्तु कोरी कल्पना से बहुत परे हैं,.

 " साँझ ",.

:- दृश्य यह लुभावना
   कर रहा कामुक मेरे शरीर का रोम रोम
alpanabhardwaj6740

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प्रिय सुशील कुमारी "सांझ",. तुम्हें पता है पहर में मुझे सबसे प्रिय है " संध्याकाल ",.. और इस समय मैं अपना हर वह कार्य विशेष रूप से कर पाती हूँ जिनमें में मैं विशेष रूचि रखती हूँ,. इसमें सबसे ज़्यादा प्रिय है मुझे सूर्यास्त यह ढलती रक्तिम सी शाम का जो लुभावना दृश्य जो मन में उकेरा देता है,. ना वह सदृश्य परन्तु कोरी कल्पना से बहुत परे हैं,. " साँझ ",. :- दृश्य यह लुभावना कर रहा कामुक मेरे शरीर का रोम रोम