Nojoto: Largest Storytelling Platform

कोरा काग़ज़ Premium Challange-18 विषय 2 :- भारतीय पर

कोरा काग़ज़ Premium Challange-18
विषय 2 :- भारतीय परंपरा (चिंतन)

(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) कोरा काग़ज़ Premium Challange-18
विषय 2 :- भारतीय परंपरा (चिंतन)

भारतीय परंपरा में, भारतीय संस्कृति एवं धर्म का बहुत महत्व है। भारत एक समृद्धशाली संस्कृति वाला देश है, यहाँ धर्म, कला, रीति-रिवाज का बौद्धिक महत्व अत्यधिक है। भारतीय संस्कृति लोगों के रीति-रिवाज, संस्कारों, आदर्शों, रहन-सहन, आदतों, विश्वास, ज्ञान से ही है। इसी कारण भारत को सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश कहा गया है, जहाँ लोग आज भी अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, आदर्शों एवं मानवता का पालन करते हैं। संस्कृति एक ऐसा माध्यम है, जिससे हम अपने आदर्शों, मूल्यों, नैतिकता को आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते हैं। पुरानी पीढ़ी के लोगों से ही आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति, धर्म और परंपराओं का ज्ञान एवं प्राप्ति होती है। किसी भी देश की सभ्यता में उसकी संस्कृति एवं आदर्शों का समावेश होता है एवं इसी के आधार पर देश की आवाम की नैतिकता, मानवता, संस्कार का निर्धारण होता है। 

भारतीय संस्कृति में कई पुरातन धर्म एवं सभ्यताओं के समावेश है, जो कि हजारों वर्ष पूर्व से निरंतर चली आ रही है। हिन्दू धर्म उन्हीं में से एक है, ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म की उत्पत्ति प्राचीन वेद पुराणों से है, जो संस्कृत एवं देवनागरी लिपि में लिखा गया है एवं इसी का अनुकरण आज भी भारतीय संस्कृति में परंपरा के रूप में किया जाता है। भारतीय संस्कृति में भी कई युगों आए परंतु वे इसे प्रभावित न कर सके एवं आज भी भारतीय संस्कृति पूरे विश्व मे पुरातन संस्कृति होने के कारण अन्य देशों के नागरिकक के कौतूहल का विषय है, जिसमे शोध करने एवं इस संस्कृति का अनुकरण करने आज भी लोग दूसरे देशों से भारत मे आते हैं। भारतीय संस्कृति की मूल जड़ें हमारी आध्यात्मिकता, मानवता है, जिसके कारण आज भी भारत मे "अतिथि देवो भवः" अर्थात अतिथियों का स्वागत देवताओं की तरह करने की संस्कृति है।

जहाँ चारों ओर विश्व मे भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को अपनाने वाले लोगों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर भारत की नई पीढ़ी के द्वारा अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं परंपरा से परे पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करना एक गंभीर चिंता का विषय है। आज के दौर में जहाँ नैतिकता, आदर्शों, मानवता का अवमूल्यन हुआ है वो निश्चित रूप से पाश्चातय सभ्यता के अनुकरण एवं अपनी संस्कृति से लोगों के भटकाव के कारण हो रहा है। किसी भी देश की युवा पीढ़ी ही उसके भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं परंतु नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों के अवमूल्यन के आधार पर देश की संस्कृति एवं परंपरा का ह्रास होता है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि क्यूँ हम अपनी युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कार, सोच-विचार, नैतिकता, आदर्श, मानवीय संवेदनाओं का ज्ञान नहीं दे पा रहे हैं, क्या कारण है कि युवा पीढ़ी का झुकाव अपनी संस्कृति के अतिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति की ओर है। यदि आज भी हम सचेत न हुए तो निश्चित ही युवा पीढ़ी अपने संस्कृति एवं संस्कारों के मार्ग से भटक सकती है। हमें आत्मचिंतन एवं युवा पीढ़ी से इस विषय पर संवाद करने की आवश्यकता है।
कोरा काग़ज़ Premium Challange-18
विषय 2 :- भारतीय परंपरा (चिंतन)

(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) कोरा काग़ज़ Premium Challange-18
विषय 2 :- भारतीय परंपरा (चिंतन)

भारतीय परंपरा में, भारतीय संस्कृति एवं धर्म का बहुत महत्व है। भारत एक समृद्धशाली संस्कृति वाला देश है, यहाँ धर्म, कला, रीति-रिवाज का बौद्धिक महत्व अत्यधिक है। भारतीय संस्कृति लोगों के रीति-रिवाज, संस्कारों, आदर्शों, रहन-सहन, आदतों, विश्वास, ज्ञान से ही है। इसी कारण भारत को सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश कहा गया है, जहाँ लोग आज भी अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, आदर्शों एवं मानवता का पालन करते हैं। संस्कृति एक ऐसा माध्यम है, जिससे हम अपने आदर्शों, मूल्यों, नैतिकता को आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते हैं। पुरानी पीढ़ी के लोगों से ही आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति, धर्म और परंपराओं का ज्ञान एवं प्राप्ति होती है। किसी भी देश की सभ्यता में उसकी संस्कृति एवं आदर्शों का समावेश होता है एवं इसी के आधार पर देश की आवाम की नैतिकता, मानवता, संस्कार का निर्धारण होता है। 

भारतीय संस्कृति में कई पुरातन धर्म एवं सभ्यताओं के समावेश है, जो कि हजारों वर्ष पूर्व से निरंतर चली आ रही है। हिन्दू धर्म उन्हीं में से एक है, ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म की उत्पत्ति प्राचीन वेद पुराणों से है, जो संस्कृत एवं देवनागरी लिपि में लिखा गया है एवं इसी का अनुकरण आज भी भारतीय संस्कृति में परंपरा के रूप में किया जाता है। भारतीय संस्कृति में भी कई युगों आए परंतु वे इसे प्रभावित न कर सके एवं आज भी भारतीय संस्कृति पूरे विश्व मे पुरातन संस्कृति होने के कारण अन्य देशों के नागरिकक के कौतूहल का विषय है, जिसमे शोध करने एवं इस संस्कृति का अनुकरण करने आज भी लोग दूसरे देशों से भारत मे आते हैं। भारतीय संस्कृति की मूल जड़ें हमारी आध्यात्मिकता, मानवता है, जिसके कारण आज भी भारत मे "अतिथि देवो भवः" अर्थात अतिथियों का स्वागत देवताओं की तरह करने की संस्कृति है।

जहाँ चारों ओर विश्व मे भारतीय संस्कृति एवं परंपरा को अपनाने वाले लोगों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर भारत की नई पीढ़ी के द्वारा अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं परंपरा से परे पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करना एक गंभीर चिंता का विषय है। आज के दौर में जहाँ नैतिकता, आदर्शों, मानवता का अवमूल्यन हुआ है वो निश्चित रूप से पाश्चातय सभ्यता के अनुकरण एवं अपनी संस्कृति से लोगों के भटकाव के कारण हो रहा है। किसी भी देश की युवा पीढ़ी ही उसके भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं परंतु नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों के अवमूल्यन के आधार पर देश की संस्कृति एवं परंपरा का ह्रास होता है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि क्यूँ हम अपनी युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कार, सोच-विचार, नैतिकता, आदर्श, मानवीय संवेदनाओं का ज्ञान नहीं दे पा रहे हैं, क्या कारण है कि युवा पीढ़ी का झुकाव अपनी संस्कृति के अतिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति की ओर है। यदि आज भी हम सचेत न हुए तो निश्चित ही युवा पीढ़ी अपने संस्कृति एवं संस्कारों के मार्ग से भटक सकती है। हमें आत्मचिंतन एवं युवा पीढ़ी से इस विषय पर संवाद करने की आवश्यकता है।