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शीशे को वो शख्स की तलाश रही, जो उसे देख भी कभी तार

शीशे को वो शख्स की तलाश रही,
जो उसे देख भी कभी तारीफ करे,
है कोई जो इसे सिर्फ अपनी कमजोरी समझे,
तिलमिलाता हुआ मन को अब क्या कोई सिर्फ कहानी समझे,
रुक जा.. संभाल ले खुदको...
मेरी सोच तो मेरी कोई परछाई ना समझे,
ए इंसान एक कर रेहम मुझपर•
मेरे ऊपर हसी न सही खुनकी स्याही न रंग दे,
न काम आ सकेंगे तुझे संभालने 
पर इसके बदले सिर्फ मेरी बुराई ही करदे...
हो जाते है टुकड़े मेरे ...
हो जाते है टुकड़े मेरे...
कभी मेरे इस दिल कि जज्बातें समझे।।

©Sabita Dakua
  Mirror ki kahani...
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Sabita Dakua

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