मुख पर रुआब लिए, होठो पर कुछ सवाल लिए, हमेशा की तरह यूँ ही, चले आना तुम मेरी दहलीज पर। वक्त के काफिले लम्बे हुए, दीवारे बट गयी लेकिन, एहसासों के दिये जलते रहे। न चाहकर भी हम , अपने ही घर में वीरानों सा , रहगुजर हम करते रहे। धड़कनों में हमारी तुम सदा से ही, धड़कते रहे। पास रख दूर करने की जो कोशिशें थी तुम्हारी, हम पढ़ कर जज्बात तुम्हारे , हर रोज अपने घर के दरवाजे , दीपक से रोशन करते रहे। इस उम्मीद से न जाने कब ये, वक्त की हवा का झोखा, मेरे घर की और तुम्हे ले आये। बस इसी इन्तजार औऱ एहसासों के संग, हम उम्मीद की स्वांस, अपने रिश्तें की जड़ो में, भरते रहे। कविता जयेश पनोत ©Kavita jayesh Panot #रिश्तो के एहसास