ये धरा के वक्ष पर बहेंगें पूरे मास हर लेंगे उसकी समस्त पीड़! प्रेम कभी सूखने नहीं देता अपना पौधा! प्रेम की बारिश में आत्मा पूर्णतया भीग जाती है... सूखना किसे है 😊 ओ, कविता! तुम भी रची गई प्रेम में,