इक तस्वीर तमाम उम्र नज़रों में चलती रही, सांसें चल रही है मग़र बर्फ़ सी गलती रही। भोली सूरत और पिन्हाँ उनकी एक मुस्कान, महकाती रही मन को शाम सी ढ़लती रही। जाने ख़्वाब थे या रंगीन हक़ीक़त के फ़सानें, आशु ख़्यालों में मग़र नई दास्ताँ चलती रही। (पिन्हाँ-छुपी हुई) 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-74 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।