टपकती नहीं छतें अब मैं तर-बतर नहीं होता कौन कहता है कच्ची दिवार में घर नहीं होता मैं बारिश को झेल लेता था मुट्ठी में अपनी बारिश तो होती है बस वो मंज़र नहीं होता खुद को बंद किए बैठा हूँ चार दिवारी में किराए के मकां में अपना कोई दर नहीं होता पानी भी बह जाता है वहाँ अपनी ही मौज में गाँव में आँगन होता है आँगन में गटर नहीं होता बैचेन हो उठता है आला बादल को देखकर बादल तो होते हैंबादल का असर नहीं होता पहली बारिश #बारिश #nojoto #nojotohindi