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शारीरिक चेष्टाओ और प्रतिदर्श के भाव को प्रेम कहना

शारीरिक चेष्टाओ और प्रतिदर्श के भाव को प्रेम  कहना व्यर्थ है.....प्रेम समर्पण  की भावना से उत्पन्न  मन का आंतरिक भाव है जिसमे शारीरिक सुख का कोई स्थान  नही होता....
शारीरिक चेष्टाओ और प्रतिदर्श के भाव को प्रेम  कहना व्यर्थ है.....प्रेम समर्पण  की भावना से उत्पन्न  मन का आंतरिक भाव है जिसमे शारीरिक सुख का कोई स्थान  नही होता....
gunahi93689

@gunahi9

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