शारीरिक चेष्टाओ और प्रतिदर्श के भाव को प्रेम कहना व्यर्थ है.....प्रेम समर्पण की भावना से उत्पन्न मन का आंतरिक भाव है जिसमे शारीरिक सुख का कोई स्थान नही होता....