____कब तक____ अरी ओ घुटन! मुस्कानों के मधुर जाल में कब तक कैद रहोगी तुम अरी ओ नदी! तपी रेत के भीतर भीतर कब तक मौन बहोगी तुम अरी ओ पवन! इठलाती तू जिस बहाव पर चक्रवात वो, झील बन गया अरी ओ घटा! जिसने तुझ में यौवन देखा वो दर्पण अश्लील बन गया वृक्ष! तुम्ही हो शायद जिसने मेरा सारा जहर पिया है पंछी! तुमने यौवन को हर बार एक नव स्वप्न दिया है कब तक