हर सू दिखने वाला शख़्स अनजाना लगता है, मगर उनका ग़म मुझे जाना पहचाना लगता है। ढूँढता फिरता हूँ दुनिया में एक लम्हा फुर्सत का, ख़ुद की मसरूफ़ियत महज़ एक बहाना लगता है। किसी ने पूछा मुझसे ग़म छुपाने की अदाकारी का राज़, मैंने उनसे कहा कि साहब इसमें तो एक ज़माना लगता है । घुट-घुट कर ही सही जी तो रहा है ज़िंदगी, हर आदमी इस ज़िंदगी का दीवाना लगता है। ऐ जिंदगी ! हाँ माना कि मैं सिफ़र ही सही, तू कोई पोथी या कोई अफ़साना लगता है। मुझसे दूर जाने की हसरतें लिए बैठा है वो, एक मैं ही हूँ जिसे उसका शहर ठिकाना लगता है। अक्सर शायरी में शामिल है तकलीफें दूसरों की, मुझे हर आदमी का जख़्म अपना लगता है। बार-बार शम्मा के नूर से चला जाता हूँ उसकी तरफ़, अनाम पतंगा है जिसे वो शरर ही आशियाना लगता है। #rzmph #शख़्स #अनाम_ख़्याल #rzmph31 Rest Zone