विडंबना कहूँ ? या कहूँ कलुषित मन की साज़िश हैं अपने ही शिकार हो रहे, अपनों की ही ख़्वाहिश हैं पाल पोषण किया जिन्होंने उनको भी नहीं बख्शा हैं कर रहे अत्याचार माँ- बाप पर, शरम ख़ुद शर्मसार हैं चंद लम्हों की हवस मिटाने निकलते दरिन्दे आज है नारी घुट रही अत्याचार संग, हाय कैसा यह संसार है अमीर कर रहा हैं सितम, गरीब मज़दूर शोषित हो रहा अत्याचार की वेदी में, वो खुद की आहुति है दे रहा हर तमगा ही समाज का आज शोषित कह सकते है आवाज उठाओ शोषित, तभी हम कुछ कर सकते हैं आज बदले इस समाज ने नींव रखी अत्याचारों की हैं हर शख़्स ज़िम्मेदार खुद ही अपनी इस बर्बादी का हैं रमज़ान:_ बढते अत्याचार (13/30) #kkr2021 #collabwithकोराकाग़ज़ #kkबढ़तेअत्याचार #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #अल्फाज_ए_कृष्णा #pinterest #google