समझा करो निगाहों निगाहों का इशारा तुम। जरूरी नहीं कि इज़्तिराब(बैचैनी) बताया जाए।। मुलाकात का मज़ा छुप छुप के है यकीनन। रस्मे दस्तूर सही मोहब्बत में क्यों ना हथेली से हथेली को थोड़ा दबाया जाए।। निगाहें पढ़ रहीं है ज़माने की मजमुम ए मुलाकात अपनी। समझने दो, जरूरी नहीं कि हर राज़ छुपाया जाए।। दामन उम्मीदों का थाम बैठे है स्वपन मेरे। ऐसे बढाओ हाथ प्रिये कि जन्मों तक थामा जाए।। दुख, दर्द, जुदाई, सब जुबानी बातें हैं यूँ करो इश्क़ की इख्लास मेरा सदियों तक जाना जाए।। छुप छुप के इश्क़ का जो मजा है वो कहीं और कहाँ