ये लिखूंगी मैं अपनी किताब के अंतिम पन्नों पर कि मैं एक दरिया हूं! जो रवानी में रहता है " एक मुसाफिर " जिसका सफ़र ही उसकी पहली और आखिरी मंजिल है" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में) बचपन में पापा ने जब साईकल दिलाई थी ना उसे चलाना नहीं आता था सीखने के लिए जब पहली बार बैठे तो डर भी था गिरने का डर , चोट लगने का डर और ये भी कि मै न सीख पाई तो आस पास खड़े