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टूट रही शब्दों की डोरी छूट रहा शब्दों का साथ खड़ी

टूट रही शब्दों की डोरी
छूट रहा शब्दों का साथ
खड़ी मौन शब्द कहीं
 छोड़ रही गहरी स्वांस
 क्यों हुई है मौन ये
 हुआ क्या ऐसा एहसास
 छूट गया हाथों से क्यों
 हाथों से हाथों का साथ
 जो टुटेगी फिर ना जुड़ेंगी
 वणोॆं से वर्णों की माला
 मन के अन्दर खड़ा है देखो
    ये गिरह का हिमाला
    ये गिरह का हिमाला 
    सविता सुमन
    सहरसा बिहार

©Savita Suman
  #शब्दों_की_डोरी