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किस किस्से का हिसाब हूं मैं, हूं घनी रात या आफताब

किस किस्से का हिसाब हूं मैं,
हूं घनी रात या आफताब हूं मैं,
इक चंचल  मन की स्मृतियां,
हकीकत हूं या ख्वाब हूं मैं,
हूं घनी छांव या दोपहर,
कभी गांव बनूं तो कभी शहर,
किस मंजिल की मैं राह तकूं,
किस डगर का अब मैं राही हूं,
हूं कागज़ कोई दफ्तर की या 
 जमीन से 
लिपटी स्याही हूं...

©Abhiraj Kumar lipti syahi 

#Photos
किस किस्से का हिसाब हूं मैं,
हूं घनी रात या आफताब हूं मैं,
इक चंचल  मन की स्मृतियां,
हकीकत हूं या ख्वाब हूं मैं,
हूं घनी छांव या दोपहर,
कभी गांव बनूं तो कभी शहर,
किस मंजिल की मैं राह तकूं,
किस डगर का अब मैं राही हूं,
हूं कागज़ कोई दफ्तर की या 
 जमीन से 
लिपटी स्याही हूं...

©Abhiraj Kumar lipti syahi 

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