बावरे मन की उलझन न सुलझे समझाऊँ तो समझाऊंँ मैं कैसे परेशानियांँ हैं कि बढ़ती ही जाती हैं इन्हें कम करूंँ तो मैं कैसे भंँवर में फंँसी है मेरी जीवन नैया पार उतारूंँ तो उतारुंँ मैं कैसे राहों में चलना हुआ मेरा मुश्किल मंँजिल तक पहुंचूंँ तो मैं कैसे उलझन में उलझा रहता मेरा मन उलझन से निकलूंँ तो मैं कैसे ना कोई संगी ना साथी हाले दिल किसको सुनाऊंँ और मैं कैसे रहती ही नहीं है सुध बुध हमें अब किस को बताऊंँ और मैं कैसे जिम्मेदारियांँ निभाने में जीवन गुजरता मन की करूंँ तो मैं कैसे दिल सुलगता है और आहें भी भरता है इसको मनाऊंँ तो मैं कैसे मुश्किल भरी राहों में हैं हरदम अंँधेरे दिए गर जलाऊंँ तो मैं कैसे मन की उलझन हरपाल डंँसती ही रहती है इससे बचूंँ तो मैं कैसे उलझती ज़िन्दगी संग रहकर जीना हुआ मुश्किल जिऊंँ तो मैं कैसे कोई तो बता दो,कोई तो सीखा दो,उलझनों से उबारों हमें चाहे जैसे। ♥️ Challenge-703 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।